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आज की धड़कनें .......(VII)

ना छेड़ इंसा तू इन नादान जीवों को, नहीं तू जानता इनके जख्मो और नीवों को, अगर तू प्यार देता इन्हे जाएगा, शेर भी तेरे आगोश में मुस्कराएंगा, और अगर तूने इनकी बेबसी पर है सितम ढाया, चींटी हो या वानर काफी है तुझे गिराने को तस्वीरें जहन की दास्ताँ बदल ना पाएंगी,...

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सलाम से ...... खताओं तक

अब ना दुआ होगी दोस्त ना सलाम, हम हैं खतावार हमें खताओं से फकत काम, खताओं की आरजू भी रखता ही होगा कोई, काफी दिन बीते लगा के किस्सा ना हुआ कोई मैंने खतायें छोड़ दी जबसे, उसने सजा ना दी कोई, यूँ लग रहा है बेमने से ही अपना बना कोई, आजाद कर लिया खुद को या आजाद...

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(रिटायरमेंट का.... दर्द)

कुछ को देखा जब उम्र की एक दहलीज़ के पार, काम से मिली थी निजात वक़्त गुजरता था साथियों के साथ, सोचा था उसने वो दिन भी आएंगे उसके, जब गुजरेंगे दिन कुछ इत्मीनान कुछ सकूँ के उसके, वो दिन आ तो गया जब काम से थे रिटायर हो गए, पर जब देखा तो पाया घर वालों को अजीब...

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ठेस लगे........ जज्बात

बहुत दूर जी कर सोचा तो था पाया हमने, कोई ठेस भीतर ही भीतर सुलग रही है यूँ, तमन्नाएँ पूरी होकर भी लगती है राख, एक चिंगारी फूंक रही है तेरी मोहब्बत ज्यूँ होने को तो सब कुछ था ही मगर, वो जो तीखी बात कह दी थी रह गयी है क्यूँ

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साये और....... तन्हाई

रेतों पर चलना सायों का मचलना, ज़रा आपका रुकना धुप का सम्हलना, अक्श याद आना आपका मुस्कराना, क़दमों को दोस्त जरा हौले बढ़ाना, मुश्किल बहुत है इश्क को भूल पाना, तन्हाइयों से सीखा है हमने गुनगुनाना

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आज की धड़कने .... (VI)

दौलत की मोहब्बत तेरी मोहब्बत से बढ़कर पायी हमने, इसके फेर में दुनिया की कई शै अपनों से पायी है परायी हमने, जो सोच कर निकला तो था धन को पालूं प्रेम के लिए, एक मोड़ पर जाकर देखा तो पाया प्रीत लफ्ज़ को हरजाई हमने, सुबह ने याद किया हमें मुस्कराते हुए, हमने याद...

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मोहब्बत की..... नींदें

नींद तुझे आ जाये ये मुमकिन तो है, याद करे मुझे और जाग जाए ये मुमकिन तो है, फिर करवटों में रात बीते ये मुमकिन तो है, सुबह कोई मिलने आये ये मुमकिन तो है

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आज की धड़कने.......... (V)

सूरज के उजालों की चलो इबादत कर लें, चंद खुशियों और दुआओं से झोलियाँ भर लें, वो किरणों की सौगाते, वो बूंदों की बरसातें, चलों कुछ ज़मी से आसमा की हम बाते कर लें, गुलों की महक सा हो जाए अंदाज़ आपका, जिस तरफ से गुजरें महक जाए ख्वाब आपका शोहरत के आसमा पर छा...

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हुस्न .......रवायत

क्यों न खुद पर कुछ करम किया जाये, खुद को संवार कर नज़रबंद किया जाये चंद महकते गुलों से एै दोस्त, खुशबुओं को फिर से हुनर मंद किया जाए,

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