30 Aug ठेस लगे........ जज्बात Published by Sharhade Intazar Ved बहुत दूर जी कर सोचा तो था पाया हमने, कोई ठेस भीतर ही भीतर सुलग रही है यूँ,तमन्नाएँ पूरी होकर भी लगती है राख, एक चिंगारी फूंक रही है तेरी मोहब्बत ज्यूँहोने को तो सब कुछ था ही मगर, वो जो तीखी बात कह दी थी रह गयी है क्यूँ
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