आराम से रहता है मोहब्बत नहीं करता, महबूब की दुनिया से शिकायत नहीं करता, एक तू है हर वक़्त ही तलवार लिए है ज़ालिम भी तो ज़ख्मों की हिमायत नहीं करता, दिमागों का यंहा दस्तूरे मोहब्बत भी क्या खूब पाया, करता सियासत हमेशा, कहता सियासत नहीं करता, कभी जब तन्हाई...
अशआर लिख रहा था एह्साशों से गुजर कर, अब तो खुदा राजी हो ख्यालों में बसर कर माना के जज्बातों की कदर करता नहीं ज़माना, जज्बातों से खुदा मेरे निगाहों में असर कर, वो दूर तलक सदा मेरी जा कर है लौट आती, कुछ नज़दीकियां अपनी मेरी राहों में मगर कर, सोचा है कायनात...
अजीब मंजर है ज़माने का मेरे साहब, कंही है रंजो गम तो कंही खंजर मेरे साहेब, हाथ खाली रख कर भी हैं क़त्ल हो रहे, निगाहों में बसा रखे हैं क़त्ल के सामां मेरे साहेब , खुशिया पल दो पल की मिले ना मिले, दर्द का मिलना तो पुख्ता तय ही है मेरे साहेब, खुदा भी दुनिया...
ओहदों ने इंसान के हाथ काट लिए हैं दोस्त, कम ही होते हैं जिनके हाथ सलामत होते हैं, मगरूर तो हो ही जाते है सभी बनकर , कम ही होते हैं जो बनकर मगरूर ना होते हैं, कुछ होते हैं जो बढ़कर सर पर रखते हैं हाथ, वो याद तो आते ही हैं मगर दुआओं में भी अक्सर होते है...
रेगिस्तान के बाशिंदों से प्यास का मतलब पूछता था खुदा, जो बादल बरस जाता था वो हो जाता था महफ़िल से जुदा, फिर एक दिन यूँ बरसाया आसमाँ ने पानी, त्राहिमाम कर उठी थी सहरा के बाशिंदों की ज़िंदगानी, हमारी प्यास का गलत शायद अंदाज़ा लगा बैठा था खुदा, प्यास बुझाने...
सुबह के उजालों ने याद दिलाया, खुदा फिर आज है हमारे दर पर आया, ख़ुशी हो या गम ये अपना अपना नसीब , जीवन की सौगात दे फिर एक दिन बढ़ाया , दोस्त खुश रहे ये हमने है दिल से गुनगुनाया आँखों की तड़प का जो तुझे अंदाज़ हो जाए, हर हंसी नज़ारे का तू हंसी साज हो जाए, मोहब्बत...
किसी के निवालों में खामियां निकाला नहीं करते, जीव के दर्द का एह्साश बताया करते हैं, विज्ञानं की तहें बताती तो ये भी है, जीवाणुं तो शाकाहार में भी रहते हैं, जुदा होकर खुद को ख़िताब दे लेते हो, इंसान को बेरहमी से क़त्ल करते हो, खुद को शाकाहारी भी कहते हो,...
खुदा की सियासत भी गड़बड़ाई हुई है, जँहा पड़ना था सुखा वंहा बाढ़ आई हुई है, खुदा का वजीर शायद सरकारी मुलाजिम हुआ है, तभी मौसमों में हेर फेर हुआ है, एक टुकड़ा बादल का पानी लिए घूमता चला जाता है, रिश्वत नहीं दी शायद तभी बाढ़ पर बरस पाता है, वजीर की जोरू की ख्वाहिशें...
पागलपन का दर्द भी क्या अजीब दर्द है, पागल जिसे समझता नहीं जाने कौन हमदर्द है, कभी कभी कुछ होते हैं जो छूट जाते हैं इससे, मगर जब याद आते हैं लम्हे सिहर उठते बेदर्द हैं, खुदा की सज़ाओं में से ये सज़ा निराली है, दुनिया से रहता है बेखबर एक अजीब ही गर्द है,...