मैं कतरा लिखता हूँ वो समंदर मानता है , ज़िन्दगी शायद वो मुझसे बेहतर जानता है, पिने को पीता हूँ अश्क बेतकल्लुफ होकर जब, वो मेरी हंसी को भी ग़मों का घर मानता है, चाहत की बातें वो करता रहता है अक्सर, मैं टूटता नहीं हूँ ये वो बेहतर जानता है, मेरे वज़ूद में जो...
कान्हा तेरे रूप को आँखों में बसाकर अश्क बहाता हूँ मैं, इस तरह इस ज़मी को छू कर तेरे चरण सहलाता हूँ मैं, जाने कब उभर आये वो बीती सदियाँ करवटें लेकर, तेरी यादों का हर जन्मदिन पर तेरे कारवां सजाता हूँ मैं, देख मीरा को तो तू भी नहीं भुला होगा, जहर है जीवन...
जंगलों को परिंदों ने छोड़ा तो है बेबसी में शायद, इंसा ने उनके बसेरे उजड़े घरौंदों की तलाश है शायद संघर्ष की दिशा का चयन गर सही ना हो पाये, तो फिर इंसान ता उम्र संघर्ष में ही बीती पाये, कभी पता भी नहीं चलता वक़्त के बहाव में, के हमने संघर्ष भी किया पल फ़िज़ूल...
सरहदें मिटाने को हमने इंसान को है तैयार पाया, नहीं समझ पाये जो थे शैतान बेगुनाहों का जिसने था लहू बहाया तुझे हुस्न पर गुमान जबसे था हो गया, हर तरफ मौसम था बेजान हो गया, खुद को इतना तूने था मशहूर किया, चर्चा तेरे जज्बात का था खो गया देखा हो गया ना जलवा...
इस पाषाण का उस धरा को सलाम है, जिसकी मिटटी मस्तक रही सदा, जिसने तराशा मंदर के लिए उसका इंसान नाम है, पर उसने पाया नहीं खुदा, मुझे संवारा गया अपनी सुविधाओं के लिए, मैं रखता गया खुद पर खुद को, आज देखता हूँ अट्टालिकाओं में मेरा नाम है, मेरे एहसासों को छूता...