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01 Sep

एह्साश...... पाषाण के

Published by Sharhade Intazar Ved

एह्साश...... पाषाण के

इस पाषाण का उस धरा को सलाम है,
जिसकी मिटटी मस्तक रही सदा,

जिसने तराशा मंदर के लिए उसका इंसान नाम है,
पर उसने पाया नहीं खुदा,

मुझे संवारा गया अपनी सुविधाओं के लिए,
मैं रखता गया खुद पर खुद को,
आज देखता हूँ अट्टालिकाओं में मेरा नाम है,

मेरे एहसासों को छूता है या तो बचपन,
या वो जो वतन की मिटटी के लिए खुद को करता कुर्बान है,

बाकियों को देखता हूँ लगता है रौंदते से चलते हैं सब,
मेरा वजूद रात में ही कुछ वक़्त ले पाता विराम है ,

एै धरा तूने भी तो सहे हैं जुर्म इंसान के,
इन्तिहाँ पर इसकी तेरा भीषण आक्रोश सहता इंसान है,
सब कुछ जान कर भी ये इंसान रहता अनजान है,
सोचता हूँ खुदा ने भी ये कैसा बना रक्खा नादान है

Comment on this post
L
बेहतरीन और सार्थक लेखन
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V
sukriya Lolita ji
M
ह्रदय स्पर्शी.... मार्मिक
Reply
V
thanks Manju ji