ज़माने के बदलते...... अंदाज़
अजीब मंजर है ज़माने का मेरे साहब,
कंही है रंजो गम तो कंही खंजर मेरे साहेब,
हाथ खाली रख कर भी हैं क़त्ल हो रहे,
निगाहों में बसा रखे हैं क़त्ल के सामां मेरे साहेब ,
खुशिया पल दो पल की मिले ना मिले,
दर्द का मिलना तो पुख्ता तय ही है मेरे साहेब,
खुदा भी दुनिया में हुस्न बिखेरकर बेखबर सा है,
इश्क वाले हुस्न को खुदा बता रहे हैं मेरे साहेब,
पीने को कोई अश्क भी पिए जा रहा है बेतकल्लुफ होकर,
अश्कों की नदी में कोई ख़ुशी के सफीने चला रहा मेरे साहेब,
ज़िन्दगी भी हर मोड़ पर छोड़ देती है नयी राह देकर,
मंज़िल तक पहुंचे वो डगर जाने कब मिलेगी मेरे साहेब,