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प्रेम ......पांति

प्रेम के हो जाने से लिखे जाने तक, अश्क के बहने से मुस्कराने तक, इंतज़ार के लम्हों को मुकम्मल पाने तक, धड़कनों के राग बदलते जाते हैं, दिलों की बस्तियों पर सहर आने तक, बीत जाती है उम्र लौट कर घर आने तक चंद दिनों में जीता है एक उम्र हर एक, मुहब्बत बदलती जाती...

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दलितों को........ दलित कहने पर

इस दर्द से गुजरते गुजरते देख कहा तक आ गए, इतना बदलकर भी देखा तो जख्म हरा ही पा गए वो कहते मिले के हमने तुम्हे इंसान माना, जो थे आज इंसानियत बेच कर खा गए, खुदा ही जाने तुझे वो अगला जन्म क्या देगा, इंसान यक़ीनन नहीं बनाएगा काफी है जीव का जन्म गर पा गए

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माँगा कुछ यूँ...... रब से

खुदा मेरे सोचने की सीमायें असीमित कर दे, दिल को रूहानियत के एह्साश से भर दे, लफ्ज़ निकले तो लोगों करार पहुंचे, मिल के हो जाए शख्सियत बेक़रार वो कर दे, लिखूं आसमा तो जमी साथ देती मिले, छू लूँ गर आग तो हवा साथ देती मिले , तेरा ही अक्स नज़र आये पढ़ कर जो याद...

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दर्द की डगर.....ऐसी भी

अब याद नहीं रखता के गम क्यूँ है, ज़िन्दगी हवाले कर दी करम यूँ है. तभी तो गम से भी याराने हो गए, वो जो गम देने आये खुद ठिकाने हो गए, एक ठंडक सी आँखों में उभर जाती है, साँस अब इत्मीनान से आती है जाती है, शिकवों से भी तौबा हो चली अब तो, उनकी तड़प पर हमारी...

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जीने का एक अंदाज़.... ये भी

गम से घबराता तो मैं भी रहा हूँ, नाउम्मीदी में उम्मीद लिए जी ही रहा हूँ, टूटना तो पत्थरों का नसीब है ही शायद, तराश दे कोई इस चाह में जहर भी पी रहा हूँ. नहीं बनना मुझे किसी मंदर की मूरत, मैं फकत रास्तों को मुकम्मल सी रहा हूँ, यूँ तो ज़िन्दगी के तजुर्बों...

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आज की धड़कने.......... (IV)

सुबह तेरे रंगों में से रंग अपने ले रहा हूँ, ख्वाब जो पूरा ना हुआ अधूरा ही तुझे मैं दे रहा हूँ, कहते हैं तू लौटा देती है मुकम्मल करके, झोलियाँ तेरी आबाद रहे दुआएं ये मैं दे रहा हूँ वो आजमाते हैं उस यकीन की हद तक, जँहा पहुंचकर भरोसे टूट जाया करते हैं ,...

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इश्क के अंदाज़ ये भी ...............

तू नज़र आ जाए इंतज़ार के लम्हे भी ये चाह रखते हैं, बाद मुद्दत तूने रुख किया तो है इस डगर का, हम डगर का शुक्रिया आवारगी में हजारों बार करते हैं, कभी रुकना कभी चलना कभी जुल्फों के अंदाज़ बदलना, तेरी हर अदा पर खुद को जख्मी हम यार करते हैं , तूने हम पर नज़र डाली...

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पंजाब का दर्द............ विदेशों से

पंजाब मेरे देश का वो परिवेश, जिससे शोभित था हर मन विशेष, गुरुओं की वाणियां और कौल सरदारो के, खाता था कसमें वक़्त भी वफादारों से, फिर आज एक दौर सा है चल पड़ा, हर दूसरा था पंजाब छोड़ विदेश निकल पड़ा, वो भी था गवारा के चलो कमाना था घर के लिए, कमाया भी वतन आया...

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आज की धड़कने ...........(III)

सुबह ने अंधियारे मिटा दिए है आज के, सूरज ने दे दिए जीवन में उजाले विश्वाश के, चलो बाँट लें ये पल पल दुआओं के एह्साश के, जब हुआ एह्साश ये फकत आपके अल्फ़ाज़ है मोहब्बत नहीं, दूरियों के दामन हमारे और भी थे करीब आ गए, रूबरू तो होते रहे थे हम मगर, फासले भी थे...

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