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Top posts

  • (ओहदों की दास्ताँ)

    18 September 2015

    ओहदों ने इंसान के हाथ काट लिए हैं दोस्त, कम ही होते हैं जिनके हाथ सलामत होते हैं, मगरूर तो हो ही जाते है सभी बनकर , कम ही होते हैं जो बनकर मगरूर ना होते हैं, कुछ होते हैं जो बढ़कर सर पर रखते हैं हाथ, वो याद तो आते ही हैं मगर दुआओं में भी अक्सर होते है...

  • खुद को समेटने का वक़्त,

    03 August 2015

    टूट कर बिखरने से पहले खुद को जोड़ लिया है, इस ज़िन्दगी ने बिन तेरे बेहतर मोड़ लिया है, टूट कर बिखरने से पहले खुद को जोड़ लिया है, इस ज़िन्दगी ने बिन तेरे बेहतर मोड़ लिया है, कसर नहीं रखी तूने उजाड़ने में उम्मीदें , तभी तुझसे रिश्ता कुछ हद तक तोड़ लिया है

  • चिराग घर का यूँ रौशन हो

    06 August 2015

    चिराग रौशन रहे घर का सबके, इंसानियत का लहू बहे रग में सबके, ना हो दौलत का कभी नशा हावी, इंसान को इंसान समझे जां के सदके ज़िन्दगी यूँ गुजरे के नाम हो उसका, ज़ुबाँ पे सबके

  • हिन्द सरताज कलाम साहेब और उनके ख़ानदान के नाम

    06 August 2015

    सज़दे में सर खुद ब खुद झुक जाता है, जब इंसान इंसानियत निभाता जाता है इंसानियत से हर दिल का गहरा नाता है, मजहब दीवार नहीं होता कंही ये तो दिलों को जोड़ने का पुराना साँचा है, वो जो फकीरी में गुजर करने पे हैं आमादा, फरिश्तों के ओहदों से उन्हें ही नवाजा जाता...

  • दोस्त मान जाए

    07 August 2015

    तेरे रूठ जाने से दर्द मेरा बढ़ ही गया होगा, जाने वो भी क्या दौर होगा, जिसमे दोस्त का दोस्त हमदर्द रहा होगा

  • चाहतों से सांसें

    09 August 2015

    कहते हैं चाहतें हैं तब सांसें चल रही हैं नहीं तो जाने कबसे ज़िन्दगी सम्हल रही है सांसों से कहना चाहतों ने भी इंतज़ार किया है, वो चलती रहें तभी तो उनके बसेरों से प्यार किया है

  • बसेरा .......... दिलों में

    13 August 2015

    किसी का दिल में उतर जाना, किसी का दिल से उतर जाना, ये मंज़र जुदा जुदा हैं , जिन्हे फकत आशिकों ने हैं जाना, है दुनिया के भी दस्तूर यही, किसी को दिखावे में है जीना, किसी को सच का ही है जाम पीना, ज़िन्दगी ने दोस्त मगर हर एक को पहचाना, किसी का दिल में उतर जाना,...

  • हिन्द में पाकिस्तान के परचम फहराने का अंजाम

    21 August 2015

    सर कलम कर देना होगा उस नामुराद खबीज़ का, जो हमारे वतन का खा पहन कर हो ना पाया ज़मीर का, तिरंगे के अलावा गर हाथों में पाक का परचम दिखे, हाथ काट दिए जाएँ, जिस्म टाँग दो चौराहे पर, सबक हो जाए गद्दारों के लिए, फौजियों को सलाम हो वीर का जय हिन्द

  • मोहब्बत की..... नींदें

    29 August 2015

    नींद तुझे आ जाये ये मुमकिन तो है, याद करे मुझे और जाग जाए ये मुमकिन तो है, फिर करवटों में रात बीते ये मुमकिन तो है, सुबह कोई मिलने आये ये मुमकिन तो है

  • हुस्न .......रवायत

    29 August 2015

    क्यों न खुद पर कुछ करम किया जाये, खुद को संवार कर नज़रबंद किया जाये चंद महकते गुलों से एै दोस्त, खुशबुओं को फिर से हुनर मंद किया जाए,

  • माँगा कुछ यूँ...... रब से

    26 August 2015

    खुदा मेरे सोचने की सीमायें असीमित कर दे, दिल को रूहानियत के एह्साश से भर दे, लफ्ज़ निकले तो लोगों करार पहुंचे, मिल के हो जाए शख्सियत बेक़रार वो कर दे, लिखूं आसमा तो जमी साथ देती मिले, छू लूँ गर आग तो हवा साथ देती मिले , तेरा ही अक्स नज़र आये पढ़ कर जो याद...

  • दलितों को........ दलित कहने पर

    27 August 2015

    इस दर्द से गुजरते गुजरते देख कहा तक आ गए, इतना बदलकर भी देखा तो जख्म हरा ही पा गए वो कहते मिले के हमने तुम्हे इंसान माना, जो थे आज इंसानियत बेच कर खा गए, खुदा ही जाने तुझे वो अगला जन्म क्या देगा, इंसान यक़ीनन नहीं बनाएगा काफी है जीव का जन्म गर पा गए

  • सलाम से ...... खताओं तक

    31 August 2015

    अब ना दुआ होगी दोस्त ना सलाम, हम हैं खतावार हमें खताओं से फकत काम, खताओं की आरजू भी रखता ही होगा कोई, काफी दिन बीते लगा के किस्सा ना हुआ कोई मैंने खतायें छोड़ दी जबसे, उसने सजा ना दी कोई, यूँ लग रहा है बेमने से ही अपना बना कोई, आजाद कर लिया खुद को या आजाद...

  • ठेस लगे........ जज्बात

    30 August 2015

    बहुत दूर जी कर सोचा तो था पाया हमने, कोई ठेस भीतर ही भीतर सुलग रही है यूँ, तमन्नाएँ पूरी होकर भी लगती है राख, एक चिंगारी फूंक रही है तेरी मोहब्बत ज्यूँ होने को तो सब कुछ था ही मगर, वो जो तीखी बात कह दी थी रह गयी है क्यूँ

  • लेखन की .......दास्ताँ

    09 September 2015

    उम्र गुजरी हुनर कोई ना हाथ आया, पेट भरना ना हो सका खुद को सिकस्त पाया, जाने कौन घडी थी जब ये कलम उठाई, खुदा ने शायद जज्बात लिखने को था कागज़ बनाया, कुछ दिए एह्साश जिसको मैं लिख तो पाया, ज़िन्दगी में सिक्कों की कमी कोई भर ना पाया, किसी लिखने वाले की दास्ताँ...

  • बदलते रंग....... इश्क के

    07 September 2015

    ये शरारत की अदा देखि ना गयी मुझसे, कहो तो गुस्ताख़ होकर शरारत करूँ कोई, आपकी आँखे हसीं तो हैं ही, और हंसी हो जाएंगी कहो तो अश्क भरू कोई जो मुस्कराहट लबों पर दर्द छुपा कर आती है, उसकी तस्वीर दर्द बोलती जाती है, ख़ुशी में मुस्कराती तस्वीर की एै दोस्त, हर...

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