09 Sep लेखन की .......दास्ताँ Published by Sharhade Intazar Ved उम्र गुजरी हुनर कोई ना हाथ आया, पेट भरना ना हो सका खुद को सिकस्त पाया,जाने कौन घडी थी जब ये कलम उठाई, खुदा ने शायद जज्बात लिखने को था कागज़ बनाया,कुछ दिए एह्साश जिसको मैं लिख तो पाया, ज़िन्दगी में सिक्कों की कमी कोई भर ना पाया, किसी लिखने वाले की दास्ताँ को ऐसा भी पाया
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