आज की धड़कने.......... (IV)
सुबह तेरे रंगों में से रंग अपने ले रहा हूँ,
ख्वाब जो पूरा ना हुआ अधूरा ही तुझे मैं दे रहा हूँ,
कहते हैं तू लौटा देती है मुकम्मल करके,
झोलियाँ तेरी आबाद रहे दुआएं ये मैं दे रहा हूँ
वो आजमाते हैं उस यकीन की हद तक,
जँहा पहुंचकर भरोसे टूट जाया करते हैं ,
देख कर लगता है बिसात बिछा रहे है वो,
मुझे शायद मोहरों सा आजमाया करते हैं
गैरों पे करम का सबब है हमसे रूठ जाना,
दर्द जब हद से गुजरने लगे तब करीब आना,
तेरे दीदार को तरसती आखों को सकूँ आ जाए,
याद करूँ तुझे और रूबरू तू आ जाए,
लफ़्ज़ों से तुझे सजाना तो चाहता हूँ मगर,
तू सजने बैठे और लफ़्ज़ों को भी सकूँ आ जाये,
जब भी गुजरा हूँ मैं भीड़ में तन्हा होकर,
एक अजीब सी हलचल को भी है तन्हा पाया,
वो जो देख रहा था मुझे गुजरते हुए,
हंस तो नहीं पाया था जब मैं था मुस्कराया,
रात तुझमे मैं समाने से पहले,
दोस्तों से विदा लूँ नींद आने से पहले,
दुआएं दूँ दुआएं लूँ ख्वाब आने से पहले,
चलो सो जाते हैं शाम के मुस्कराने से पहले