मौत ..........जाते जाते
जख्मी हो जाते हैं दफनाते वक़्त हाथ जिनके,
अँधेरे आसुओं में बह जाते हैं दिन रात उनके,
यादें तो परछाई हो ही जाया करती हैं,
लगा के जो रखते हैं दिल से जज्बात उनके,
फिर वक़्त के साथ बदल जाती है परछाइयाँ,
नए हो जाते हैं जज्बात और नए हालात उनके
मौत का निशाँ गहरे तभी उनमें छूटता है
जब रूह का रिश्ता हो जाए रूहानियत के साथ उनके