जंग दोस्ताने में
बन्दूक की गोली सा रूठ जाते हैं दोस्त,
रूठना है कंही , निशाना कंही लगाते हैं दोस्त,
यूँ तो जंग का इरादा होता है कभी कभी,
पर जुबा की तीरंदाज़ी रोज दिखाते हैं दोस्त,
कुछ ेऐसे भी मिल पड़े हैं इस राह में हमसे,
शोहरत और दौलत के ढेर पर खड़े
हाथ मिलाते हैं दोस्त,
कुछ तो जंग में खुद को बाहुबली समझ कर,
बेवजह ब्लॉक करते जाते हैं दोस्त,
फिर जब याद आती है मान ही जाते हैं दोस्त