आज की धड़कने ........ (Xii)
हम बेवफाई भी वफ़ा के साथ करते हैं,
गर फना हो जाए कोई तो ही जफ़ा करते हैं,
ऐसा नहीं के मतलब से ही ढूंढा गया हो आपको,
बेमतलब बिताया वक़्त शायद याद नहीं आपको,
बेवफाई का इश्तहार मैंने लगा तो दिया है,
खाली ना चला जाए तभी अपना नाम दिया है,
इलज़ाम सहने की तो अपनी आदत रही है,
तभी इंसानियत जैसा हमने गुनाह भी किया है
मोहब्बत थी या है इसका फैसला बाकी है दोस्त,
बिन उसके वक़्त गुजारो गुजर पाये तो,
कभी कभी लगेगा किसी ने पुकारा है दोस्त
चमन को उजाडने का भी दस्तूर गज़ब है,
जमीन के टुकड़ों के लिए होता कहर है,
घर खुदा का हो या इंसान का,
बिखरकर दोनों ही पर होता असर है
कुछ में इंसानियत के लिए रहता जहर है