आज की धड़कने........ (XI)
तेरे अल्फ़ाज़ों को कोई शायर भी बना देगा सब्र रख,
किसी को बना अपना ज़रा अपने हुस्न पर भी नज़र रख,
जब कभी जिक्र दोस्त तेरे अश्कों का होगा,
दर्द तेरा तू मान ले कुछ हमने भी सहा होगा,
आजमाइश आपकी नहीं हम खुद की कर रहे हैं,
धोखे से ही सही जज्बातों की माला बुन रहे हैं
ये जो तस्वीरों से बाहर निकल आने का आपका हुनर है,
हम भले अनजान हों पर ज़माना कहा बेखबर है,
दर्द और इंतज़ार का भी अपना ही मज़ा है,
समझो तो दिल्लगी ना समझो तो सजा है