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04 Aug

खुदा तेरे अंदाज़ अलग

Published by Sharhade Intazar Ved

खुदा तेरे अंदाज़ अलग

एक तो खुदा तेरी ये दुनिया
उस पर मरे ज़मीर वाले ये लोग
चंद सिक्कों के लिए औकात बताते ये लोग
माना के मंदिर ना मस्जिद जाता मैं
तूने तो देखा दिल से सज़दे निभाता हूँ मैं
तेरा भी साथ नहीं या है क्या समझूँ मैं,
देख कर तो लगता तू भी साथ निभाता इन ज़मीर वालों का
जो मोहताज़ था वो मोहताज़ रह ही गया निवालों का.
तू भी दीवाना हो गया शायद मस्जिद और शिवालों का,
तभी इंसान भूल गया इंसानियत इबादत के ख्यालों का
कंही मैं नास्त
िक ना हो जाऊं

Comment on this post
A
बहुत खूब।बहुत क़ीमती लाइने हैं ।
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A
अद्भुत लेखन है।
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E
"बिंदी 1 रुपये की आती है व ललाट पर लगायी जाती है।<br /> पायल की कीमत हजारों में आती है पर पैरों में पहनी जाती है।<br /> इन्सान आदरणीय अपने कर्म से होता है, उसकी धन दौलत से नहीं।
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E
nyc
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M
Wow....wakai aatma hilane wali panktiyaan
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V
Thanks Madhu ji