खुदा तेरे अंदाज़ अलग
एक तो खुदा तेरी ये दुनिया
उस पर मरे ज़मीर वाले ये लोग
चंद सिक्कों के लिए औकात बताते ये लोग
माना के मंदिर ना मस्जिद जाता मैं
तूने तो देखा दिल से सज़दे निभाता हूँ मैं
तेरा भी साथ नहीं या है क्या समझूँ मैं,
देख कर तो लगता तू भी साथ निभाता इन ज़मीर वालों का
जो मोहताज़ था वो मोहताज़ रह ही गया निवालों का.
तू भी दीवाना हो गया शायद मस्जिद और शिवालों का,
तभी इंसान भूल गया इंसानियत इबादत के ख्यालों का
कंही मैं नास्तिक ना हो जाऊं